Biography of Jagadguru Yogiraj Kamalanayanacharya | संक्षिप्त जीवनी जगद्गुरु योगिराज PDF
Biography of
Jagadguru Yogiraj Kamalanayanacharya.
in Nepali
“संक्षिप्त जीवनी जगद्गुरु योगिराज कमलनयनाचार्य “
Biography of Jagadguru Yogiraj Kamalanayanacharya | संक्षिप्त जीवनी जगद्गुरु योगिराज PDF
Biography of Jagadguru Yogiraj Kamalanayanacharya
योगिराज श्रीकमलनयनाचार्य स्वामी
(जन्म: विक्रम संवत 1925, भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष दशमी)
योगिराज श्रीकमलनयनाचार्य स्वामी नेपाल के पहले जगद्गुरु थे, जिन्हें इस उपाधि से विभूषित किया गया। वह एक अद्वितीय वैष्णव संत थे, जिन्होंने अष्टांग योग में निपुणता प्राप्त की और आजीवन अन्न का परित्याग कर केवल गाय का दूध ग्रहण किया। नेपाल में रामानुजाचार्य द्वारा प्रतिपादित श्रीवैष्णव संप्रदाय को पुनर्जीवित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। श्रीस्वामीजी ने सनातन वैदिक धर्म के संरक्षण और संवर्धन में अपना जीवन समर्पित किया।
जन्म और बाल्यकाल
योगिराज श्रीकमलनयनाचार्य स्वामी का जन्म इलाम जिले के नामसालिंग गाँव में हुआ। उनके पिता मोतिखर (मुक्तिनाथ) और माता यशोदा रिमाल के तीसरे पुत्र थे। बाल्यकाल का अधिकांश समय इलाम के सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में बीता। उनके पिता ने घर पर ही उन्हें अक्षर ज्ञान कराया। आठ वर्ष की आयु में उनका उपनयन संस्कार (ब्रतबन्ध) संपन्न हुआ।
शिक्षा की शुरुआत
बचपन में उनकी शिक्षा-दीक्षा भोजपुर जिले के दिङ्ला में बालागुरु षडानंद द्वारा स्थापित संस्कृत पाठशाला में हुई। वहाँ उन्होंने वेद, व्याकरण और कर्मकांड का अध्ययन किया। बालागुरु षडानंद के योग, तप और त्याग से प्रभावित होकर उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत का रुख किया। अयोध्या, वृंदावन, कांचीपुरम, श्रीरंगम और बद्रीनाथ जैसे धार्मिक स्थलों पर उन्होंने वेदांत दर्शन, श्रीमद्भागवत, और विशिष्टाद्वैत पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने श्रीवैष्णव दीक्षा ग्रहण की और दक्षिण भारत में श्रीअनंताचार्य स्वामी के शिष्य बने।
योग साधना
बद्रीनाथ के ज्योतिर्मठ में श्रीरघुनाथाचार्य के सान्निध्य में अष्टांग योग का अभ्यास करते हुए उन्होंने तपस्या की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर श्रीरघुनाथाचार्य ने उन्हें ‘योगिराज’ की उपाधि प्रदान की।
आचार्य उपाधि और धर्म प्रचार
श्रीवैष्णव परंपरा में उनका योगदान अतुलनीय है। पश्चिम नेपाल के कैलाली, बर्दिया, गुल्मी, और दाङ जैसे क्षेत्रों में उन्होंने धर्म प्रचार किया। भारत के आसाम, भूटान, और सिक्किम में भी उनकी धर्मयात्रा हुई। उन्होंने धार्मिक जागरूकता के साथ मंदिर और गुरुकुल स्थापित किए।
श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर और गुरुकुल
अपने जीवन के अंतिम समय में उन्होंने झापा जिले के माईधार क्षेत्र को अपना निवास चुना। वहाँ उन्होंने श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर की स्थापना और प्राण-प्रतिष्ठा की। गुरुकुल विद्यालय की स्थापना कर वेद अध्ययन को प्रोत्साहित किया।
नियमित जीवनशैली
श्रीस्वामीजी ने 28 वर्ष की आयु से अन्न त्याग दिया और जीवनभर केवल गाय का दूध ग्रहण किया। उनका दैनिक जीवन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान, यौगिक क्रियाएँ, और वेद पाठ सुनने में व्यतीत होता था।
श्रीस्वामीजी का योगदान
योगिराज श्रीकमलनयनाचार्य स्वामी का जीवन प्रेरणा और धर्म प्रचार का प्रतीक था। उनके प्रयासों ने नेपाल और भारत में वैदिक धर्म और श्रीवैष्णव संप्रदाय को नई ऊँचाई दी। उनका जीवन सरलता, तपस्या और धार्मिकता का उदाहरण है।